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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 दोहासागर
 

मन्क पंछी बावरा, उड़-उड़ व्याकुल होय

तन्त्र विलासी हो गया, लोक करे विषपान


मोहन कब लौटें सखी, तनिक बता दे मोय

कालचक्र के साथ ही , उलटा सकल विधान


अक्ल बड़ी या भैंस यह प्रश्न एक श्रीमान

बोले संसद तक चलो, तुरत पड़ेगा जान


बदली लेकर आ गयी, क्यों सावन संदेस

तड़पत हूँ बिरहन बनी, पिया बसे परदेस


नैना सावन बन गये, मन में मेघ विषाद

बिजली बन हँसती रही, प्रियतम तेरी याद

 

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