हिन्दी पावन गंगा  
  उठ जाग भारत जाग रे  
  ना मैं छंदों का सौदागर  
  अंगारे लिख जाता हूँ  
  अभिनन्दन है  
  गीतों के बंजारे  
  मूरत है बलिदान की  
  विक्रमी संवत्  
  भोर की किरण कहे  
  स्वर्ण मंदिर : एक अनुभूति  
    ॠतु-मिलन  
   गोकुल है बेहाल  
  महावीर वंदना  
  शून्य और सृष्टि  
  बंधन  
  प्रेम