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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 ग़ज़ल
ये जो तेरे अपने घर मे
तेरी इज्जत अफजाई है
गलतफहमियों में मत रहना
दौलत अपने संगलाई है

वो चला था इस जमाने को सिखाने तैरना
नाम उसका डूबनेवालों में यारो जुड़गया
मौत कैसे आसमां से आयेगी सोचा था बस
इक परिंदा झील से मछली पकड़कर उड़ गया


जब उजियारे मिले हमें
पत चला अंधियारा क्या
कितनी घोर आमाबस थी
फिरभी सूरज हारा क्या
सच तो आखिर सच ही है
मेरा और तुम्हार क्या

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