बूँद-बूँद है कर रही,सागर का गुणगान औरों के जो दुख हरे, जग में वही महान आग लगी पाताल में, धूम्र चढा आकाश मछली प्यासी मर रही, कौन बुझाए प्यास गीत लिखे औ’फिर लिखे] पुस्तक दई बनाय युग बदले मौसम गये,सार समझ ना आय मानव मन की भूख का,कोई आर न पार सारे जग को खा गई तब भी हाहाकार गुल खिलते गुलशन बना, पतझड़ दिया भुलाय समय चक्र के पाट में, हर मौसम पिस जाय |