फूलों में रस ना रहा, कली रही मुरझाय माली सौदागर बने, उपवन दिया सुखाय भ्रष्टाचारी दौर से गुजर रहा यह देश चाँदी का जूता पड़े मिटते सकल कलेश तन बेचा, मन भी बिका और बिका ईमान इन्सानों ने देखिए, बेच दिया भगवान जलियाँवाला बाग भी, छोड़ चला उम्मीद रो-रो कर कहता यही , हो ना कोई शहीद बहती आँधी स्वार्थ की गुलशन दिया उजाड़ फाल्गुन सँग बस आग है, सावन संग चिंघाड़ |