साँठ-गाँठ का दौर है, बदल रहे दिन-रात मानव चतुर सुजान को , मूरख देते मात दाँव-दाँव की बात है, दाँव है माया जाल दाँव लगे राजा बने, दाँव पड़े कंगाल जनसख्या के पेट में, समा रहे, वन, गाँव प्यासा पनघट से मुड़े, थके-थके से पाँव राम-राम तोता रटे, अर्थ ना जाने जीव लाख करो तप साधना, भाव बिना निर्जीव ज्ञान सखा परदेश में, ज्ञान ही सच्चा मीत भवसागर तर जाये मन, करे ज्ञान संग प्रीत |


