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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 दोहासागर
 

शब्द अगर बनकर रहें हर पल भाव प्रधान

शब्द ब्रह्म बन गूँजता, तब हर शब्द महान


सुर से सुर मिलता नही, गीत हुय बदनाम

बंसी की धुन लाओ अब ओ मेरे घनश्याम


लुटे-लुटे जंगल सभी, लुटे-लुटे से गाँव

लील गये ऊँचे भवन, वह अम्बुजा की छाँव


शहरों का साम्राज्य है, बौने होते गाँव

प्यास लौटती कूप से, थके-थके है पाँव


किसका यह गुणगान है, कैसा गौरव-गान

भूख करे तांडव यहाँ, सस्ती बिकती जान

 

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