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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 दोहासागर
 

 ऐसी जर्जर हो गयी, दरवाजे की टाट

लगी झाँकने बीच से, टूटी-फूटी खाट


ब्रह्मा,विष्णु सो गये, शिव हैं अन्तर्धान

गूँज रही संसार में, नेतओं की तान


मोती चुगते काक अब, हंसो को वनवास

पहरा देती लोमड़ी, वीराना मदुमास


रात अमावस की यहाँ , नहीं रहेगी शेष

करें प्रतीक्षा धैर्य से होगी से होगी भोर विशेष


प्रेम डगर कंटक बिछे, पी की नगरि दूर

माँग भरें कब साजना, पूछ रहा सिंदूर

 

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