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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 दोहासागर
 

ब्रह्म कलश जब छलकता, बहे ज्ञान की गंग

भीगे मन-चुनरी अजब, चढे प्रेम का रंग


मधुबन से भँवरे करें, सदा यही अनुबंध

रस-पराग बस चाहिए, ना चाहे हम गंध


चंचल शीतल चाँदनी, यौवन का भंडार

निशा संग करती रही, लहरों का श्रृंगार


राम-राम तोता रटे, अर्थ ना जाने जीव

लाख करो तप साधना, भाव बिना निर्जीव


ज्ञान सखा परदेश में, ज्ञान ही सच्चा मीत

भवसागर तर जाये मन, करे ज्ञान संग प्रीत

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