ब्रह्म कलश जब छलकता, बहे ज्ञान की गंग भीगे मन-चुनरी अजब, चढे प्रेम का रंग मधुबन से भँवरे करें, सदा यही अनुबंध रस-पराग बस चाहिए, ना चाहे हम गंध चंचल शीतल चाँदनी, यौवन का भंडार निशा संग करती रही, लहरों का श्रृंगार राम-राम तोता रटे, अर्थ ना जाने जीव लाख करो तप साधना, भाव बिना निर्जीव ज्ञान सखा परदेश में, ज्ञान ही सच्चा मीत भवसागर तर जाये मन, करे ज्ञान संग प्रीत |