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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
  मुक्तक - 1  
  मुक्तक - 2  
  मुक्तक - 3  
  मुक्तक - 4  
  मुक्तक - 5  
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
 

 

 
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
 मुक्तक
 
बड़े ही संगदिल, खुदगर्ज़ कितने बेवफा निकले
डुबोया है हमें मझदार कैसे नाखुदा निकले
बड़ी उम्मीद से जिनको बनाया रहनुमा अपना
वे सौदागर दिलों के कातिलो के देवता निकले

तमन्ना कोई दिल में हो सरे बाजार मत करना
हो नफरत भी अगर दिल मे जुबां से वार मत करना
है इक बाजार ये दुनियां यहा हर चीज बिकती है
अगर हो प्यार तुमको प्यार का व्यापार मत करना

कभी सागर की गहराई में जाने की तमन्ना है

कभी आकाश के तारों को पाने की तमन्ना है

अभी वो सीख ना पाया ज़मी पे चैन से रहना

सुना है चांद पर भी घर बनाने की तमन्ना है


हो आँखों में कोई तस्वीर तो अरमां मचलते है

जवां होती है जब धड़कन दिलों में ख्वाब पलते है

बुझाना मत कभी उम्मीद के बुझते चरागों को

हो सच्चा प्यार गर दिल में तो पत्थर भी पिघलते

है


अंधेरा बांटने वाले सुबह खुद को बताते हैं

दगा है खून में जिनके भरोसा भी दिलाते हैं

जमाने में वफा बदनाम है जिन बेवफाओं से

वही देखो सबक हमको मोहब्बत का सिखाते हैं

 

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