भले होली, दीवाली, तीज की खुशियां मनाना तुम भले ही कामयाबी के नये सपने सजाना तुम अगर जो चाहते हो वो गुलामी फिर से ना आएं मिटे जो देश की खातिर नहीं उनको भुलाना तुम जमाने में मुकद्दर से ही ये पैगाम आता है लहू कोई वतन का जब वतन के काम आता है करोड़ो जी रहे दुनियां मे लेकिन सच यही यारो वतन पे जां लुटाये जो जहाँ में नाम पाता है सुनहरी सुबहो आयेगी सुहानी शाम आयेगी कभी मस्ती भरे नग्में हवा भी गुनगुनायेगी ये बहता वक्त का दरिया भी शायद सहर जायेगा कभी चुपके से जब उस बेवफा की याद आयेगी किसी को मैं नहीं भाया कोई मुझको नहीं भाया यूँ ही मेरी मौहब्बत पर रहा गरदिश का इक साया मगर बस एक ही गम उम्र भर मुझको सतायेगा जिसे चाहा था दिल ने क्यों जुबां से कह नहीं पाया भले होली, दिवाली, तीज की खुशियां मनाना तुम भले ही कामयाबी के नये सपने सजाना तुम अगर जो चाहते हो वो गुलामी फिर से ना आये मिटे जो देश की खातिर उन्हें मत भूल जाना तुम |