कितने दधीचियों ने अस्थियों क दिया दान कितने तपस्वियों का मिला वरदान है कितने ही दिनकर उदित हुए हैं यहाँ अँधेरों पे जिनका ये विजय-अभियान है तम के सितम से न हार जाए उजियारा नये युग का ये नयी क्रान्ति को आह्वान है भारत के वासियों! तुम्हारे ही हाथों में अब मातु भारती की आन-बान और शान ह |