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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 छन्द-निर्झर : तीज

तीज हरियाली आई मन में उमंग लाई

लगे मानो सावन पे चढती जवानी है

पपीहा के गीत और दादुरों के स्वर मीत

भँवरों का नृत्य कहे रुत मस्तानी है

झूले अम्बुआ की डार, नार गाएँ मल्हार

सखी औ सहेली कहें रूप में रवानी है

पुरवा बयार लाई रिमझिम-सी फुहार

बादलों की जीत-हार लगती सुहानी है


 
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