Untitled Document
Untitled Document
Untitled Document
एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 छन्द-निर्झर : हुए जो शहीद, हम सबके दुलारे थे

हमको उजाला देते-देते जो बुझे हैं उन

दीपकों की पावन कतारों को नमन् है

मातृ-वंदना के गीत गाते-गाते चूम लिए

उन फाँसी वाले पुण्य हारों को नमन् है

बलिदानी स्वरों की पुकारों को नमन् मेरा

कोल्हुओं से बही तेल धारों को नमन् है

क्रांतिकारियों ने जहाँ लिखा वन्देमातरम्

सेल्युलर जेल की दीवारों को नमन् है

 


 
Untitled Document
परिचय | मुखपृष्ठ | अनुभव की धारा | प्रैस | अपनों की नजर में | संस्मरण | सम्पर्क
सर्वाधिकार सुरक्षित © २०१० ईमेल : mail@gajendersolanki.com