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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 छन्द-निर्झर : शिवाजी मराठा सरदार को प्रणाम हैं

नारियों को जननी समान मान देनेवाले

जीजाबाई वाले संस्कार को प्रणाम हैं

गुरु रामदास वाली चेतना से ओत-प्रोत

पंथनिरपेक्ष दरबार को प्रणाम हैं

शत्रुओं को मिली ललकार को प्रणाम और

माता भवानी की तलवार को प्रणाम हैं

शूरता के दिव्य पारावार को प्रणाम मेरा

शिवाजी मराठा सरदार को प्रणाम है


 
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