मातु हंसवाहिनी , प्रदीप्त ज्ञान्दायिनी माँ मेरे प्यारे भारत को ऐसा वरदान दे हर घर – आँगन में खुशियों के फूल खिलें विश्व-गुरु भारत की खोई आन-बान दे दैवी आपदाओं से माँ करना सुरक्षा सदा भ्रष्ट-दुष्ट पापियों को भी तू सद्गज्ञान दे कवियों की कविता हो लोक- कल्याणकारी हर भारतीय को असीम स्वाभिमान दे
एकता, अखण्डता का सुर चारों ओर उठे जन-गण- मन को वीणा की ऐसी तान दे सारी ये वसुन्धरा ही बन जाये तीर्थ-धाम शक्ति और भक्ति का अमर दिव्य-दान दे सागर-सा धैर्य और चिन्तन विशाल, मातु लक्ष्य के विधान-हेतु साधना दे ज्ञान दे भाँति-भाँति के सुमन महकाएँ देवभूमि राम-कृष्ण जैसे महापुरूष महान हैं |