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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 छन्द-निर्झर : राणा जी प्रताप की तपन को नमन है

चेतक की टापों संग हल्दीघाटी में जो उड़ी

उस धूल से सजे गगन को नमन है

धर्म, संस्कृति,स्वाभिमान हेतु किया गया

शूरता के पावन हवन को नमन है

राजस्थानियों के हृदयों मे जो धधक रही

राज्पूतों वाली उस अगन को नमन है

हल्दी घाटी से दिल्ली तक भी पहुँच गयी

राणा ज़ी प्रताप की तपन को नमन है


 
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