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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 गीत-सरिता : अभिनन्दन ह

अभिनन्दन है औ वंदन है

नवयुग के उजियारो का

सत्यकर्म और राष्र्टधर्म की

नैया के पतवारो का, अभिनन्दन है

अभिनन्दन है आशाओं का

है अभिनन्दन आस्थाओं का

जिनका तन-मन-धन अर्पित है

अभिनन्दन पुण्यात्माओं का

राष्र्टवेदी पर नित जलते जो

क्रान्ति ज्वाल विचारों का, अभिनन्दन है

अभिनन्दन है शुभकर्मों का

देशभक्ति पालक धर्मों का

स्वार्थो के इस अंधकार में

अभिनन्दन भावुक मर्मों का

जन-गण सेवा में जो अर्पित

नूतन नवल सहारों का, अभिनन्दन ह

 

 



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