प्रेम अश्रु की बहती गंगा जो भी कर लेता स्नान स्वार्थ रहित होकर वह जीता, मानव बन जाता भगवान बहती है जो हृदय-देश से पावन करती तन-मन को बैठ किनारे रह जाते जो व्यर्थ गँवाते जीवन को स्वार्थ, कपट ,छल की बाधाएँ पार नहीं जो कर पाते द्वेष, ईर्ष्या, अहंकार की आग में मानव जल जाते प्रेम अश्रु की शीतल धारा पावन करती तन-मन-प्रान स्वार्थ रहित होकर वह जीता, मानव बन जाता भगवान इस धारा में भेंद नहीं है जात, पात औ’ भाषा का ढाई अक्षर की सुर-लहरी, है अंकुर चिर आशा का गाता है कण-कण ब्रह्माण्ड का जिसकी गाथाओं के गीत फूट रहा कोमल कलियों से जिसका वह शाश्वत संगीत मानव वही जो करता नित-नित, पल-पल प्रेम-सुधा का पान स्वार्थ रहित होकर वह जीता, मानव बन जाता भगवान यही भक्ति का पावन रस है और यही अमृत धारा राम-नाम का सार यही है यह मीरा का इकतारा कोटि-कोटि सुर, नर, मुनियों ने इस अमृत का पान किया युगों-युगों से मानवता को अमर प्रेम का दान दिया देते हैं संदेश प्रेम का गीता, बाइबल और कुरान स्वार्थ रहित होकर वह जीता, मानव बन जाता भगवान जीवन क्षणभंगुर मानव तू प्रेम के गीत सुनाए जा पग-पग पर इस जीवन के तू प्रेम-सुधा छलकाए जा कपट स्वार्थ है पाप जगत में प्रेम का पुण्य कमाये ज जिनको ठुकराता जग सारा उनको गले लगाये जा सत्यकर्म है छुपा हुआ जिसमें इस वसुधा का कल्यान स्वार्थ रहित होकर वह जीता ना नदियाँ थीं,ना सागर था वसुधा पर वीराना था धरा अकेली दुखी विचरती कोई नही पहचाना था पड़ी दृष्टि तब परम पिता की करुणा का इक ज्वार उठा बह निकली थी अश्रु की गंगा उससे था सागर ये बना फूट पड़ा फिर जीवन अंकुर ईश्वर ने पायी पहचान स्वार्थ रहित होकर वह जीता
|