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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 गीत-सरिता : महावीर वंदना

कलियुग-तम घनघोर है, मानवता है अधीर

बनकर सूरज ज्ञान का, आ जाओ महावीर

वर्धमान महावीर-भगवान रे !

धीर-वीर महावीर-भगवान रे!

सत्य अहिंसा की नदिया का

सूख चला अब नीर

वर्धमान महावीर-भगवान रे !

वर्द्धमान  हे! तृषलानंदन

वीतराग फिर आओ। जी

भारत के सोये जन-जन को

तन्द्रा तोड़ जगाओ जी

जलता है जग आन बहाओ

शीतल   मलय    समीर

वर्धमान महावीर-भगवान रे!

हे! अखिलेश्वर वीर प्रभु तुम

तीर्थकर अविनाशी जी

प्रेम सिन्धु हे ! दया सिन्धु तुम

जन-जन के घट वासी जी

हुई विषैली प्रेम की गंगा

पल-पल बढती  पीर

वर्धमान महावीर-भग्वान रे !

आप अहिंसा के अवतारी

शाश्वत प्रेम पुजारी जी

बिना आपके है अनाथ से

भारत के नर-नारी जी

पार उतारो भवसागर से

तोड़ो हर जंजीर

वर्धमान महावीर भगवान रे !



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