कलियुग-तम घनघोर है, मानवता है अधीर बनकर सूरज ज्ञान का, आ जाओ महावीर वर्धमान महावीर-भगवान रे ! धीर-वीर महावीर-भगवान रे! सत्य अहिंसा की नदिया का सूख चला अब नीर वर्धमान महावीर-भगवान रे ! वर्द्धमान हे! तृषलानंदन वीतराग फिर आओ। जी भारत के सोये जन-जन को तन्द्रा तोड़ जगाओ जी जलता है जग आन बहाओ शीतल मलय समीर वर्धमान महावीर-भगवान रे! हे! अखिलेश्वर वीर प्रभु तुम तीर्थकर अविनाशी जी प्रेम सिन्धु हे ! दया सिन्धु तुम जन-जन के घट वासी जी हुई विषैली प्रेम की गंगा पल-पल बढती पीर वर्धमान महावीर-भग्वान रे ! आप अहिंसा के अवतारी शाश्वत प्रेम पुजारी जी बिना आपके है अनाथ से भारत के नर-नारी जी पार उतारो भवसागर से तोड़ो हर जंजीर वर्धमान महावीर भगवान रे ! |