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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 गीत-सरिता : हिन्दी पावन गंगा

अमर रहे वैभव तेरा हिन्दी मातु महान !

करें हम अन्तिम सांस तक तेरा ही यशगान

मेरे देश के बसैया हिन्दी को अपनाओ रे !

हिन्दुस्थान के बसैया हिन्दी को अपनाओ रे !

जय हिन्दी का नारा मिलकर सभी लगाओ रे !

मेरे देश के बसैया हिन्दी को अपनाओ रे !


हिन्दी जन-जन के अन्तर में प्रेम-सुधा बरसाती है

नूतन नवल पे ज्योति ज्ञान की जीवन धन्य बनाती है

गहन तिमिर मन के हरने को, आशा-दीप जलाती है

चेतन और अचेतन वाणी ईशवर दरस करती है

हिन्दी दुर्गा, हिन्दी काली, सरस्वती कल्याणी है

हिन्दी ब्रह्मा, विष्णु, औ शिव की महाशक्ति क्षत्राणी है

हिन्दी लक्ष्मी, पार्वती, कमला का है अवतार अमर

शब्दब्रह्म की अनुपम पुत्री और अनुठी वाणी है

हिन्दी पावन गंगा, गोता सभी लगाओ रे !

ओ, मेरे देश के बसैया हिन्दी को अपनाओ रे !!


सूफी, सन्तों को जिस भाषा ने शाश्वत वरदान दिया

तुलसी, सूर, कबीरा सबने हिन्दी का आह्वान किया

वल्लभ, विटठल और जायसी हिन्दी का गुणगान किया

मीरा औ रसखान ने भी हिन्दी अमृत का पान किया

नानक औ रैदास, मलूका की भक्ति महकाती है

हों रहीम, रत्नाकर, भूपति हिन्दी सबको भाती है

प्रेमचन्द, भारतेन्दु, बिहारी हिन्दी सबकी थाती है

केशव, रामानन्द, गजानन का गौरव बतलाती है

मन के सिंहासन पर हिन्दी को बैठाओ रे

ओ, मेरे देश के बसैया हिन्दी को अपनाओ रे !!


बच्चन, पंत, निराला, दिनकर हिन्दी-महिमा गाई है

शुक्ल, द्विवेदी औ भूषण ने भी हिन्दी अपनाई है

चंदरबरदाई के छंदों में हिन्दी मुस्काई है

नागर, धूमिल, नागार्जुन ने हिन्दी-कथा सुनाई है

 जयशंकर औ गुप्त, सुभद्रा हिन्दी-गाथा कहते हैं

स्नातक औ केदार, कोहली हिन्दी-धारा बहते हैं

देवराज, त्यागी, नेपाली और व्यास भी कहते हैं

हिन्दी का आशीष मिला हम सबके दिल में रहते हैं

हिन्दी-माँ की ममता-छैयाँ मत बिसराओ रे !

ओ मेरे देश के बसैया हिन्दी को  अपनाओ रे !!


 विद्यापति, शमशेर , त्रिलोचन, निर्मल, शानी आए हैं

घनानन्द औ बालकृष्ण या हरिऔध चित भाए है

रमानाथ, परसाई, जोशी और प्रगल्भ लुभाए हैं

मुक्तिबोध, अज्ञेय, अश्क ने हिन्दी के गुण गाए हैं

 काकाजी, नीरज, बैरागी, इंदीवर मनभाए हैं

हों प्रदीप या भरत व्यास, हिन्दी के गीत सुनाए हैं

विष्णु प्रभाकर, कमलेश्वर ने हिन्दी पुष्प खिलाए हैं

माणिक, शैल, आदित्य, चक्रधर हिन्दी मंच सजाए हैं

  विजय-पताका हिन्दी की जग में फहराओ रे

 ओ, मेरे देश के बसैया हिन्दी को अपनाओ रे !!


भाषाओं की नदियाँ मिलतीं हिन्दी ऐसा सागर है

छलक रही अमृत-घट सम जो हिन्दी ऐसी गागर है

भारत की रग-रग में बहता हिन्दी प्रेम-सुधाकर है

गली-गाँव औ नगर-नगर में हिन्दी ज्ञान-प्रभाकर है

 हिन्दी संस्कृत की बेटी है, नित-नित नयी-नवेली है

गुजराती, कन्नड़, मलयालम या बोली बुन्देली है

तमिल, मराठी, बंगला, उर्दू, पंजाबी अलबेली है

हिन्दुस्थानी हर भाषा हिन्दी की सखी-सहेली है

हिन्दी-गौरव् की सुगन्ध जग में फैलाओ रे

ओ,मेरे देश के बसैया हिन्दी को अपनाओ रे !!


अँग्रेजो, तुम भारत छोड़ो बापू ने उच्चारा था

खून के बदले आजादी यह नेताजी का नारा था

आजादी का हर परवाना हिन्दी में हुंकारा था

जय जवान औ जय किसान भी हिन्दी का ही नारा था

हिन्दी ही तो आजादी के संघर्षो की शक्ति रही

भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु औ शेखर की भक्ति रही

अशफाकउल्लाह औ बिस्मिल की हिन्दी में अनुरक्ति रही

हिन्दी ही तो क्रान्ति की भाषा औ पौरूष-अभिव्यक्ति रही

हिन्दी प्रेम-पुजारी बन सब शीश झुकाओ रे

ओ, मेरे देश के बसैया हिन्दी को  अपनाओ रे !!


हिन्दी मन की भाषा ,हिन्दी जन-जन की अभिलाषा हो

नयी सदी, नवयुग में हिन्दी नवचेतन की आशा हो

कोटि-कोटि जन प्रेम करें अब ऐसी कुछ परिभाषा हो

हिन्दी के मस्तक पर छाया अब तो दूर कुहासा हो 

हिन्दी अपनी भाषा अपनी संस्कृति का उद्धार करें

साधक बन ॠषियों-मुनियों के सपनों को साकार करें

और पतित न हो नवयुग में कुछ एसे संस्कार भरें

अलंकार,रस, छन्दों से माँ हिन्दी का श्रृंगार करें

अपमानित ना हो घर में ही ऐसा कुछ इस बार करें

सौ करोड़ सब मिल हिन्दी को तिलक लगाओ रे

ओ, मेरे देश के बसैया हिन्दी को अपनाओ



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