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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 गीत-सरिता : गीतों के बंजार

हम खुशियों के लिए भटकते फिरे सदा बाजारों में

मान और सम्मान ढूँढते रहे राज-दरबारों में

हम खुशियों के लिए

छलकी गीतों की गगरी तो हमने भी दो घूँट पिये

मधुशाला-सी लगी ज़िन्दगी बेशक हम दिन चार जिए

नाम लिखा जायेगा अपना गीतों के बंजारों में

हम खुशियों के लिए

समय भँवर के चक्रपाश में जब मन की नैया डोली

महल-दुमहले व्यर्थ हुए जब गीत बने कुछ हमजोली

लहर-लहर का साथ ढूँढते रहे सदा मँझधारों में

हम खुशियों के लिए  

जीवन और मरण हो या फिर पाप पुण्य ने भरमाया

लाभ-हानि के हिचकोलों में जब खुद को बेबस पाया

नव किरणों की बाट जोहते रहे सदा अँधियारों में

हम खुशियों के लिए

कभी ग्रीष्म की तपी दोपहरी कोमल तन को झुलसाया

माघ-पौष की शीत लहर ने अन्तर तक को ठिठुराया

इन्द्र धनुष के रंग ढूँढते सावन की बौछारों में

हम खुशियों के लिए  

जीवन पगडण्डी पर चलते-चलते जब खो जाएँगे

वर्तमान के मोहपाश से जब अतीत हो जाएँग़े

आनेवाला कल ढूँढेगा हमको चाँद सितारों में

हम खुशियों के लिए

 

 

 



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