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एक बूँद हूँ पर अन्तस में मैने सागर को पाया है, बनने को सागर बन जाउँ तटबन्धों से डर लगता है| सम्बन्धों से डर लगता है| अनुबन्धों से डर लगता है|
 गीत-सरिता : उठ जाग भारत जाग र

उठ जाग भारत जाग रे

आलस्य, निद्रा त्याग रे

पुरुषार्थ का बीड़ा उठा

जागेगा तेरा भाग रे

उठ जाग भारत जाग रे


टुकड़ों में जो तू बँट रहा

उत्साह तेरा घट रहा

संघर्ष की बेला है यह

तू एकता का बिगुल बजा

उठ जाग भारत जाग रे


नेता सुभाष की आस तू

पटेल का विश्वास तू

तू बापू की लाठी भी है

शौर्य का आकाश तू

उठ जाग भारत जाग रे


ॠषियों की है संतान तू

शहीदों का अरमान तू

गौरव है राम और कृष्ण का

है भविष्य का भगवान तू

उठ जाग भारत जाग रे


अब छोड़ राग ये जात का

पंजाब का, गुजरात का

तू हिंद की सन्तान है

कर अंत काली रात का

उठ जाग भारत जाग रे


क्यों चीखता कश्मीर है

क्यों पूर्वांचल भी अधीर है

अबला की लुटती लाज क्यों

मन भारती के पीर है

उठ जाग भारत जाग रे


जन-जन के तन-मन-प्रान में

अज्ञानियों के धयान में

नवयुग का तू संदेश भर

इस व्यथित हिन्दुस्तान में

उठ जाग भारत जाग रे


अब दूत बन तू क्रान्ति का

वरदान दे पर शान्ति का

तू जग-हृदय सम्राट बन

कर अंत विश्व-अशान्ति का

उठ जाग भारत जाग रे


तू ध्यान कर उस आन का

खोई हुई पहचान का

संकल्प ले निर्माण का

खुशहाल हिन्दुस्तान का

उठ जाग भारत जाग रे


माँ भारती का ध्यान कर

तू शक्ति का आह्वान कर

अब राष्र्ट के कल्याण हित

निज स्वार्थ का बलिदान कर

उठ जाग भारत जाग

 



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